छोटाकुरपा के अध्‍यापक एवं छात्र/छात्राएं ऑखों की देखभाल एवं नेत्रदान के प्रति हुए जागरूक

छोटाकुरपा हाई स्‍कूल

पोस्‍टः रतनपुर, ब्‍लाकः ओन्‍दा, जिलाः बांकुरा

छोटाकुरपा हाईस्‍क्‍ूल, रतनपुर, ओन्‍दा, बाकुरा

दिनांक 8 अगस्‍त 2012 को अंतरदृष्टि, आगरा ने पंश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में जिला मुख्‍यालय से लगभग 17 किलो मीटर दूर ओन्‍दा, ब्‍लॉक में रतनपुर स्थित छोटाकुरपा हाईस्‍कूल में ऑखों की देखभाल, बच्‍चों में दृष्टिहीनता एवं नेत्रदान के प्रति स्‍कूली अध्‍यापकों एवं छात्रों को एक कार्यशाला आयोजित कर जागरूक किया। आस-पास के विभिन्‍न स्‍कूलों से आये लगभग 72 स्‍कूली अध्‍यापकों एवं छात्र-छात्राओं ने इसमें अपनी भागीदारी की।

कार्यशाला में पहले चरण में मुख्‍य रूप से ऑखों की महत्‍ता, ऑखों की देखभाल, बच्‍चों में अधंता से बचाव में अध्‍यापकों की भूमिका, बच्‍चों को ऑखों के प्रति कैसे संवेदनशील किया जाय, ऑखों के लिए हानिकारक तत्‍व एवं काम, अंधता की तरफ बढ़ने के लक्षण एवं इसकी पहचान के तरीके आदि पर चर्चा हुई। दूसरे भाग में सहभागियों को दृष्टि यात्रा के दौरान दिखाई जा रही नेत्रदान जगारूकता फिल्‍मों को दिखा कर नेत्रदान के प्रति जागरूक किया।

दृष्टि2011 में गोल्‍डेन आई प्राप्‍त फिल्‍म ‘रितु वांटस 2 सी’ के प्रोडयूसर सुदर्शन पॉल और निदेर्शिका एवं दृष्टि2012 टीम की सदस्‍या निवेदिता मजूमदार के प्रयासों से आयोजित इस कार्यशाला में छोटाकुरपा हाईस्‍कूल के हेडमास्‍टर माधव प्रसाद बंदोपाध्‍याय, ओन्‍डा ब्‍लाक के स्‍पेशल एजुकेटर चंदन शुक्ल ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

सहभागियों के स्‍वागत एवं संक्षिप्‍त परिचय से शुरू हुई इस कार्यशाला में दृष्टिहीनता की समस्‍या एवं इससे बचाव की जरूरत पर जोर देते हुए निवेदिता मजूमदार ने कार्यशाला के उद्देश्‍यों को बताते हुए कहा कि पंश्चिम बंगाल में दृष्टिहीनता एक बड़ी समस्‍या है। सही जानकारी के अभाव और समय पर इलाज न हो पाने के कारण बहुत से बच्‍चे दृष्टिहीन हो जाते है, यदि समय रहते ऑखों की बीमारियों का इलाज हो सके तो बहुत से बच्‍चों को दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता है। इस प्रयास में नेत्रदान भी एक महत्‍वपूर्ण भमिका अदा करता है। यदि लोग नेत्रदान के प्रति जागरूक हो तो बहुत सारे ऐसे दृष्टिहीनों को जिनके जीवन में कोर्नियल ब्‍लाइंडनेस के कारण अंधकार छाया है, नेत्रदान एक नई रोशनी ला सकता है।

दृष्टिहीनों के मौजूदा हालात एवं दृष्टिहीनता से बचाव में अध्‍यापकों की भूमिका को महत्‍वपूर्ण बताते हुए अखिल श्रीवास्‍तव ने कहा कि भारत की कुल आबादी में 40 प्रतिशत संख्‍या 15 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों की है, जिनमें से ज्‍यादातर अब स्‍कूल जा रहे है। यदि सिर्फ इसी वर्ग पर ध्‍यान केंद्रित किया जाये तो अध्‍यापको की मदद से बहुत सारे लोगो को दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता है। कार्यशाला के दौरान सहभागियों को ऑखों की महत्‍ता, खान-पान, साफ-सफाई, हानिकारक चीजों की जानकारी, काम करने का सही तरीका, किताब से ऑखों की दूरी, स्‍वच्‍छ वातावरण, ऑखों संबंधित बीमारियों के लक्षण एवं पहचान के तरीके, गलत मान्‍यताओं को दूर करना, खेल-कूद एवं त्‍योहार के समय में ध्‍यान रखने योग्‍य बाते, ऑखों की जॉच, ऑखों की देखभाल आदि को बताया गया।

कोर्निया ट्रान्‍सप्‍लांट के बारे में जानकारी देते हुए दृष्टि टीम के सदस्‍य

कार्यशाला में एक प्रजेन्‍टेशन के माध्‍यम से नेत्रदान संबंधी जानकारी – जैसे कोर्निया क्‍या होता है, कोर्नियल ब्‍लाइंडनेस क्‍या है, नेत्रदान कौन कर सकता है, नेत्रदान करने का तरीका क्‍या है, किन बातो को ध्‍यान में रखना चाहिए आदि-आदि को विस्‍तार से बताया गया।

तत्‍पश्‍चात दूसरे भाग में सहभागियों को दृष्टि यात्रा के दौरान दिखाई जा रही नेत्रदान जगारूकता फिल्‍मों को दिखा कर नेत्रदान के प्रति जागरूक किया गया। स्‍थानीय भाषा में बनी दृष्टि2011 में गोलडेन आई प्राप्‍त फिल्‍म ‘रितु वांटस 2 सी’ के अलावा सिलवर आई प्राप्‍त विजिगल, आई 4 यू, द विश आदि फिल्‍मों ने भी सहभागियों को नेत्रदान के प्रति जगारूक किया।

स्‍कूल के हेड मास्‍टर माधव प्रसाद बंदोपाध्‍याय, ने अंतरदृष्टि टीम और सहभागियों का ध्‍यन्‍यवाद देते हुए  बताया कि उन्‍होंने भी पढ़ाई के दौरान नेत्रदान का फार्म भरा था, और उन्‍हें इस बात की बहुत खुशी है कि आज उनके स्‍कूल में भी नेत्रदान के प्रति लोगों में जागरूकता लाने हेतु कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। उन्‍होंने इस बात से निराशा जाहिर की उनके आस-पास कोई भी नेत्रबैंक नहीं है और न ही इस प्रकार की लोगों में कोई जागरूकता है। इस तरह के कार्यक्रम लगातार होते रहने चाहिए ताकि लोगों में जागरूकता आये और सरकार पर नेत्रबैंक के लिए दबाव बने।

दृष्टि2012 में हो रहे क्रियेटिव कांटेस्‍ट के बारे में भी लोगों को जानकारी दी गई और प्रेरित किया गया कि इस क्षेत्र से भी लोग कांटेस्‍ट में भाग लेगें। छात्र-छात्राओं से यह भी अनुरोध किया गया कि वह कार्यशाला से प्राप्‍त अपने अनुभवों को न सिर्फ अपने आस-पास के लोगों से बांटे बल्कि उसे लिख कर अंतरदृष्टि को भी भेजे।

सहभागियों को स्‍थानीय भाषा यानि बांग्‍ला में जानकारी देने में चंदन शुक्‍ल एवं निवेदिता मजूमदार ने सहयोग दिया। ….और अंत में स्‍कूल के हेडमास्‍टर एवं सहभागियों को अंतरदृष्टि ने धन्‍यवाद दिया और उम्‍मीद की कि यह सामूहिक पहल आगे भी जारी रहेगी और जल्‍द ही बांकुरा में एक नेत्रबैंक या कोर्निया कलेक्‍शन सेंटर की शुरूआत होगी।

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