एशिया के सबसे बड़े गांव पुनिसोल के अध्‍यापक एवं छात्र/छात्राएं ऑखों की देखभाल एवं नेत्रदान के प्रति हुए जागरूक

पुनिसोल हाई स्‍कूल

पोस्‍टः पुनिसोल , ब्‍लाकः ओन्‍दा, जिलाः बांकुरा

Punisole High School, Distt. Bankura, West Bengal

दिनांक 7 अगस्‍त 2012 को अंतरदृष्टि, आगरा ने पंश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में जिला मुख्‍यालय से लगभग 17 किलो मीटर दूर ओन्‍दा ब्‍लॉक में एशिया के सबसे बड़े गांव पुनिसोल स्थित पुनिसोल हाईस्‍कूल में ऑखों की देखभाल, बच्‍चों में दृष्टिहीनता एवं नेत्रदान के प्रति स्‍कूली अध्‍यापकों एवं छात्र – छात्राओं को एक कार्यशाला आयोजित कर जागरूक किया। आस-पास के विभिन्‍न स्‍कूलों से आये लगभग 64 स्‍कूली अध्‍यापकों एवं छात्र – छात्राओं ने इसमें अपनी भागीदारी की।

कार्यशाला में पहले चरण में मुख्‍य रूप से ऑखों की महत्‍ता, ऑखों की देखभाल, बच्‍चों में अधंता से बचाव में अध्‍यापकों की भूमिका, बच्‍चों को ऑखों के प्रति कैसे संवेदनशील किया जाय, ऑखों के लिए हानिकारक तत्‍व एवं काम, अंधता की तरफ बढ़ने के लक्षण एवं इसकी पहचान के तरीके आदि पर चर्चा हुई। दूसरे भाग में सहभागियों को दृष्टि यात्रा के दौरान दिखाई जा रही नेत्रदान जगारूकता फिल्‍मों को दिखा कर नेत्रदान के प्रति जागरूक किया।

दृष्टि2011 में गोल्‍डेन आई प्राप्‍त फिल्‍म ‘रितु वांटस 2 सी’ के प्रोडयूसर सुदर्शन पॉल और निदेर्शिका एवं दृष्टि2012 टीम की सदस्‍या निवेदिता मजूमदार के प्रयासों से आयोजित इस कार्यशाला में पुनिसोल हाईस्‍कूल के हेडमास्‍टर सुभाष चन्‍द्र बन्‍दोपाध्‍याय, ओन्‍दा ब्‍लाक के स्‍पेशल एजुकेटर चंदन शुक्ल ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

सहभागियों के स्‍वागत एवं संक्षिप्‍त परिचय से शुरू हुई इस कार्यशाला में दृष्टिहीनता की समस्‍या एवं इससे बचाव की जरूरत पर जोर देते हुए चंदन शुक्‍ल ने कार्यशाला के उद्देश्‍यों को बताया। स्‍कूल के हेड मास्‍टर सुभाष चन्‍द्र बन्‍दोपाध्‍याय ने अंतरदृष्टि टीम और सहभागियों का स्‍वागत करते हुए बताया कि उनके स्‍कूल में पहली बार इस तरह का प्रयास हो रहा है, और उन्‍हें इस बात की खुशी है कि उनके स्‍कूल में ना सिर्फ इस तरह को कार्यक्रम आयोजित हो रहा बल्कि स्‍कूल के अध्‍यापक/विद्यार्थी भी कार्यशाला को लेकर काफी उत्‍साहित है। तत्‍पश्‍चात निवेदिता मजूमदार ने चंदन शुक्‍ल की बातो को विस्‍तार देते हुए बताया कि पंश्चिम बंगाल में दृष्टिहीनता एक बड़ी समस्‍या है। सही जानकारी के अभाव और समय पर इलाज न हो पाने के कारण बहुत से बच्‍चे दृष्टिहीन हो जाते है, यदि समय रहते ऑखों की बीमारियों का इलाज हो सके तो बहुत से बच्‍चों को दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता है।

दृष्टिहीनों के मौजूदा हालात एवं दृष्टिहीनता से बचाव में अध्‍यापकों की भूमिका को महत्‍वपूर्ण बताते हुए अखिल श्रीवास्‍तव ने कहा कि भारत की कुल आबादी में 40 प्रतिशत संख्‍या 15 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों की है, जिनमें ज्‍यादातर अब स्‍कूल जा रहे है। यदि सिर्फ इसी वर्ग पर ध्‍यान केंद्रित किया जाये तो अध्‍यापको की मदद से बहुत सारे लोगो को दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता है। कार्यशाला के दौरान सहभागियों को ऑखों की महत्‍ता, खान-पान, साफ-सफाई, हानिकारक चीजों की जानकारी, काम करने का सही तरीका, किताब से ऑखों की दूरी, स्‍वच्‍छ वातावरण, ऑखों संबंधित बीमारियों के लक्षण एवं पहचान के तरीके, गलत मान्‍यताओं को दूर करना, खेल-कूद एवं त्‍योहार के समय में ध्‍यान रखने योग्‍य बाते, ऑखों की जॉच, ऑखों की देखभाल आदि को विस्‍तार से बताया गया।

खास तौर पर अध्‍यापको के लिए अंतरदृष्टि द्वारा दृष्टिहीनता से बचाव हेतु, तैयार किये गये जागरूकता मैनुअल की विशेषताओं और उसको प्रयोग करने के तरीकों पर विस्‍तार से चर्चा हुई।

सुभाष चन्द्र बन्दोपाध्‍याय, चंदन शुक्‍ल, अखिल श्रीवास्‍तव

तत्‍पश्‍चात दूसरे भाग में सहभागियों को दृष्टि यात्रा के दौरान दिखाई जा रही नेत्रदान जगारूकता फिल्‍मों को दिखा कर नेत्रदान के प्रति जागरूक किया गया। स्‍थानीय भाषा में बनी दृष्टि2011 में गोलडेन आई प्राप्‍त फिल्‍म ‘रितु वांटस 2 सी’ के अलावा सिलवर आई प्राप्‍त विजिगल, आई 4 यू, लाईट, द विश आदि फिल्‍मों ने भी सहभागियों को नेत्रदान के प्रति जगारूक किया।

सहभागियों में इस बात को लेकर थोड़ी निराशा जरूर थी कि कार्यशाला उनकी स्‍थानीय भाषा में नहीं थी, लेकिन साथ ही साथ उन्‍हें इस बात की खुशी भी थी कि कार्यशाला के माध्‍यम से उन्‍हें महत्‍वपूर्ण जानकारी मिली। सहभागियों को स्‍थानीय भाषा यानि बांग्‍ला में जानकारी देने में चंदन शुक्‍ल एवं निवेदिता मजूमदार ने सहयोग दिया।

कार्यशाला के अंत में हुई एक छोटी परिचर्चा के दौरान अध्‍यापकों ने इस बात पर जोर दिया कि जागरूकता मैनुअल को बांग्‍ला में भी तैयार किया जाये। चंदन शुक्‍ल ने मैनुअल की उपयोगिता को बताते हुए कहा कि इसका उपयोग प्रत्‍येक स्‍कूल में होना चाहिए, इसमें बच्‍चों को ऑखों के प्रति संवेदनशील बनाने एवं जागरूकता लाने हेतु जो विधियां/तरीके बताएं गएं है वो न सिर्फ रोचक है बल्कि बहुत ही प्रभावी भी है। यदि हम इसको ठीक तरीके से प्रयोग में ला सके तो बहुत सारे लोगों को दृष्टिहीन होने से बचा सकते है। उन्‍होंने यह भी उम्‍मीद जगाई की जल्‍दी ही उनकी टीम के साथ भी इस तरह की एक कार्यशाला का आयोजन होगा।

अंतरदृष्टि टीम के सदस्‍यों की बातचीत स्‍थानीय गांव में दृष्टिहीनों के लिए चल रहे एक स्‍कूल के बच्‍चों एवं उनके माता-पिता से कराई गई। निवेदिता मजूमदार ने बच्‍चों और उनके माता-पिता को प्रेरित करते हुए बताया कि आज दृष्टिहीन भी समाज की मुख्‍यधारा में शामिल हो रहे है, नौकरियां कर रहे है, तो उन्‍हें निराश होने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने आगे बताया कि सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा त‍भी परिस्थितियां बदलेगी और अंधकार दूर होगा।

और अंत में स्‍कूल के हेडमास्‍टर एवं सहभागियों को अंतरदृष्टि ने धन्‍यवाद दिया और उम्‍मीद की कि यह सामूहिक पहल आगे भी जारी रहेगी।

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